दिवाली पूजन विधि – दिवाली पूजन कैसे करें

Diwali Pujan Vidhi

पुरातन काल से ही इस दिन षोडशोपचार पूजा करने का प्रचलन है जो निम्नानुसार है:

१. आवाहन – अपने आराध्य देव का ध्यान कर उन्हे हाथ जोडकर नमन करे एवं अक्षत चढ़ायें ।

वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटि सम प्रभः ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ।।
ॐ गं गणपतये नमः आवाहनम् समर्पयामि ।


या देवी सर्व भुतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नमः ।।
ॐ महालक्ष्मयै नमः । आवाहनम् समर्पयामि ।।

२. आसन – देवताओं की मूर्ती को विराजमान कराने के लिए कुषा, दुर्वा, अथवा पुष्प के आसन का उपयोग करे ।

ॐ गं गणपतये नमः आसनम् समर्पयामि ।।
ॐ महालक्ष्मयै नमः आसनम् समर्पयामि ।।

३. पाघ्य (चरण) पूजन – पाघ्य के लिए चंदन युक्त जल सें प्रतिमाओं के चरण पखारे ।

ॐ गं गणपतये नमः पाघ्यम् समर्पयामि ।।
ॐ महालक्ष्मयै नमः पाघ्यम् समर्पयामि ।।

४. अर्ध्य – शुद्ध जल को एक पात्र में डाल कर देवताओ के सन्मुख रख देवें ।

ॐ गं गणपतये नमः अर्ध्यम् समर्पयामि ।।
ॐ महालक्ष्मयै नमः अर्ध्यम् समर्पयामि ।।

५. आचमन – आचमन के लिए पात्र से थोडा शुद्ध जल अपने हाथों में लेकर ग्रहण करें ।

ॐ गं गणपतये नमः आचमनीयं समर्पयामि ।।
ॐ महालक्ष्मयै नमः आचमनीयं समर्पयामि ।।

६. शुद्धोदक स्नान – एक तांबे के पात्र में प्रतिमाओं को रखकर कलश में रखे हुए शुद्ध जल से भगवान को स्नान कराये। अगर प्रतिमा ना हो तो श्रीयंत्र या चांदी का सिक्का भी उपयोग में ले सकते है।

ॐ गं गणपतये नमः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।।
ॐ महालक्ष्मयै नमः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।।

७. यज्ञोपवित – भगवान गणेश पर शुद्ध जनेऊ अर्पण करें ।

ॐ गं गणपतये नमः यज्ञोपवितं समर्पयामि ।।


८. वस्त्र – भगवान गणेश एवं श्री लक्ष्मी माता को नये अथवा सूती वस्त्र अर्पण करें ।

ॐ गं गणपतये नमः वस्त्रमुपवस्त्रम् समर्पयामि ।।

ॐ महालक्ष्मयै नमः वस्त्रमुपवस्त्रम् समर्पयामि ।।


९. गंध – पूजा के थाल में से कुंकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन, अबीर, गुलाल, सिंदूर आदि का दाहिने हाथ की अनामिका उंगली से देवताओं का तिलक करें । भगवान को ईत्र भी लगा देवें ।

ॐ गं गणपतये नमः गन्धं समर्पयामि ।।

ॐ महालक्ष्मयै नमः गन्धं समर्पयामि ।।

भगवान गणेश और लक्ष्मी माता को पीली सरसों अर्पण करें एवं कमलगटटा सिर्फ श्री लक्ष्मी माता को अर्पण करें ।

१०. पुष्प – देवताओं पर स्वच्छ एवं सुगंधित पुष्प चढाए ।

ॐ गं गणपतये नमः पुष्पाणि समर्पयामि ।।

ॐ महालक्ष्मयै नमः पुष्पाणि समर्पयामि ।।


११. धूप धूप को प्रज्जवलित करें।

ॐ गं गणपतये नमः धुपयामि समर्पयामि ।।

ॐ महालक्ष्मयै नमः धुपयामि समर्पयामि ।।


१२. दीप – शुद्ध घी से भरा दीपक प्रकाशमान करे एवं इसे प्रतिमा के दाहिनी ओर रखें।

ॐ गं गणपतये नमः दीपं समर्पयामि ।।
ॐ महालक्ष्मयै नमः दीपं समर्पयामि ।।


१३. नैवेद्यं मिश्री / गुड़ / मोदक अथवा घर में बना हुआ शुद्ध भोजन / मिष्ठान का भगवान को भोग लगाये ।

ॐ गं गणपतये नमः नैवेद्यं समर्पयामि ।।
ॐ महालक्ष्मयै नमः नैवेद्यं समर्पयामि ।।


१४. ताम्बुल (बना हुआ पान ) – लौंग – इलायची एवं सुपारी से लगे हुए पान को भगवान के सन्मुख रखें ।


ॐ गं गणपतये नमः तांबुलम् पूर्णम् समर्पयामि ।।
ऊँ महालक्ष्मयै नमः तांबुलम् पूर्णम् समर्पयामि ।।


१५. प्रदक्षिणा – अपने स्थान पर खड़े रहकर दाहिने से बाहिने ओर घुमकर प्रदक्षिणा लेवें ।

यानि कानी च पापानि जन्मांतर कृतानि च ।
तानि सर्वानि नश्यन्तु प्रदक्षिणा पदे पदे

नवग्रह पूजन


सुपारी को नवग्रह मानकर उनका अक्षत, कुंकुम, चंदन, पुष्प आदि से पूजन करें ।

ब्रह्मा मूरारी त्रिपुरान्तकारी । भानुः शशी, भूमीसुतो बुधश्रच ।।

गुरूश्रच, शुक्रःशनि राहु केतवः सर्वै ग्रहा शान्ति करा भवन्तुं ।।

कुबेर पूजा


अपने घर की तिजोरी अथवा गहनों की पूजा करें एवं उन पर स्वास्तिक चिन्ह कुंकुम से अवतरित करके कुबेर मंत्र का जाप करें।
ॐ श्री कुबेराय नमः


आरती श्री गणेशजी की


जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा,

माता जाकि पार्वती पिता महादेवा

एक दन्त दयावंत चार भुजाधारी,

मस्तक सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी

अंधन को आँख देत कोढ़ियन को काया,

बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया

हार चढ़े फूल चढे और चढे मेवा,

लडुवन का भोग लगे, संत करे सेवा
दीनन की लाज रखो भांभु सुतकारी,

कर जोडे विनंती करे आनंद उर भारी

काम सकल सिद्ध करे श्री गणेश देवा,

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा

आरती श्री लक्ष्मीजी की


जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निसि दिन सेवत, हर विष्णू घाता ।।

ब्रह्माणी रूद्राणी कमला, तू ही है जग माता ।

सूर्य चंन्द्रमा ध्यावत्, नारद ऋषि गाता।।

दुर्गा रूप निरंजनी, सुख संपति दाता ।

जो कोई तुमको ध्यावत्, अष्ठसिद्वि पाता।।

तू ही पाताल वंसती, तू ही है शुभ दाता।

कर्म प्रभाव प्रकाशनि, जगनिधि हे त्राता ।।

जिस घर तेरा वास, जाहि में गुण गाता।

कर न सके सो करले, मन नही घबराता ।।

तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न हो माता।

खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ।।

शुभ गुण सुन्दर सुक्ता, क्षीर निधि जाता।

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई न नर पाता।।

आरती लक्ष्मीजी की जी कोई नर गाता ।

उद आनंद अति उमंगे, पाप उतर जाता ।।

मंगलचरण आरती


कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसार सारं भुजगेन्द्र हारम।

सदा वसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवान्सिहतं नमामि ।।

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